Tuesday, 28 January 2020

कलयुग का जड़ अहंकार!अहंकार क्या है!?

अहंकार कहा रखे?अहंकार क्या है!?

अहंकार किस तरह जीवन में दुख लाता है? यह माना जाता है कि हमारे जीवन में दुखद घटनाओं की असल वजह अहंकार है। अहंकार के कारण ही हम अपने को जीवन के हर क्षेत्र में उत्कृष्ट मानने लगते हैं। अहंकार के मद में चूर होकर हम दूसरों के अनुभवों और ज्ञान का उपयोग नहीं कर पाते। संसार के हर व्यक्ति में, चाहे वह कितना ही कमजोर या खराब क्यों न हो, एक अनुकरणीय अच्छाई अवश्य होती है। उस अच्छाई को अहम के कारण न तो देख पाते हैं और न ही ग्रहण नहीं कर पाते हैं। हमारा अहम सदैव दूसरों की कमजोरी एवं बुराई को ही देखता है। अहं की अज्ञानता के कारण हम हमेशा दूसरों को नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं। 

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अहंकारी हमेशा दूसरों को नीचे गिराकर ही आगे बढ़ने के बारे में सोचता रहता है। जब कभी वह ऊंचाई पर पहुंचता है, उसका दंभ और भी बढ़ जाता है। पर ऐसे वक्त में वह भूल जाता है कि एक दिन जब उसका पतन होगा और वह नीचे गिरेगा, तो उसका साथ देने वाला कोई नहीं होगा। वह अभागा अकेले ही अपने कष्टों को भोगता हुआ पतन का शिकार हो जाता है। अहंकार हमारी पर्सनैलिटी को उसी प्रकार धुंधला किए रहता है, जैसे धधकते अंगारों पर जमी हुई राख की पर्त आंच की चमक को धुंधला किए रहती है। आखिर कोई व्यक्ति अहंकारी किस तरह बन जाता है? अहंकार को तुच्छ प्रकार की मनुष्यता भी कहा जाता है। अनगिनत पापों को जन्म देने वाला यह अहंकार आत्म प्रशंसा के बीज से उत्पन्न होता है। खुद को सर्वोच्च मान लेने का भाव इसी से ही पैदा होता है। दूसरों पर हावी रहने की प्रवृत्ति इसी से ही पैदा होती है। न जाने कितने प्रकार के मानसिक रोग अहंकार के कारण ही पैदा होते हैं। हम जाने-अनजाने अनेक पाप अहंकार के कारण करते हैं। अहंकार न जाने कितने रूपों में आकर हमें भ्रमित करता रहता है और हमें अपने लक्ष्य से भटकाता है। अहंकार असल में एक मृगतृष्णा के समान होता है, जिसमें न तो खुद की प्यास बुझती है और न ही दूसरों की। अपने को हर क्षेत्र में पूर्ण मान लेने की भूल कराने वाला अहम हमेशा कमियों को छिपाने का कार्य करता है। व्यक्ति अपनी कमियों और दोषों को जानते हुए भी अहंकारवश दूसरों के सामने स्वीकार नहीं करता। वह हमेशा परनिंदा में ही लगा रहता है। ऐसी स्थिति में निंदा रस उसके जीवन का स्वादिष्टतम रस होता है। घृणा, द्वेष, क्रोध, प्रतिशोध जैसे घातक मानस रोग उसे जीवन भर परेशान करते रहते हैं। मानस रोगों का नाश करने वाली औषधियों, जैसे कि क्षमा, दया, करुणा, प्रेम, धैर्य, नम्रता, सादगी से वह हमेशा वंचित ही बना रहता है। अहम के वशीभूत होकर व्यक्ति इन औषधियों का सेवन नहीं कर पाता, जिससे मानसिक रोग समाप्त होने की बजाय बढ़ते ही जाते हैं। क्या अहंकार पर काबू पाया जा सकता है? अपने पापों और गलतियों को हम हृदय से स्वीकार करते जाएं, तो आगे हम इनकी पुनरावृत्ति से बच सकते हैं। गलतियों को दिल से स्वीकार करने वाला क्षमा मांगकर पापों और अपराधों से बच जाता है। क्षमा मांगने वाला और क्षमा करने वाला, दोनों ही तमाम प्रकार के मानसिक असंतोष से बचकर शांति और आनंद का अनुभव करते हैं। इस प्रकार हमारी विनम्रता तभी सुशोभित होती है, जब वह क्षमा का आभूषण पहन लेती है। अहंकार का नाश होने पर ही विनम्रता की भावना पैदा होने लगती है। अंदर की असीम, अक्षय शक्ति को जागृत करने वाली विनम्रता हृदय में ज्ञान की ज्योति जलाया करती है। ज्ञान ज्योति जलने से अंतरतम के अंधकार में रहने वाले सभी मानसिक रोग भाग जाते हैं। विनम्रता हमारे हृदय में प्रार्थना और भक्ति का द्वार खोलती है। भक्ति के जरिए हम प्रायश्चित करके हृदय को पवित्र कर सकते हैं। मन से उत्पन्न होने वाली अतृप्त कामनाओं का नाश भक्ति से ही होता है। सभी पापों का नाश करने वाली भक्ति हमारे अंदर ईश्वर के विराट रूप का दर्शन करवाती है। जब हम विनम्रता की थाली में, क्षमा की आरती, प्रेम का घृत, दृढ़ विश्वास का नैवैद्य भगवान को समर्पित करते हैं, तब प्रायश्चित की आरती जलने पर इसकी लौ में 'मैं' रूपी अहंकार का राक्षस जलकर भस्म हो जाता है।


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